नई दिल्ली – Zoho के संस्थापक और CEO श्रीधर वेम्बू ने AI (Artificial Intelligence) और Robotics के बढ़ते प्रभाव को लेकर एक गंभीर और चिंतनशील नजरिया पेश किया है। वेम्बू का मानना है कि आने वाले समय में मशीनें और रोबोट भले ही इंसानों की कुछ नौकरियां छीन लें, लेकिन असली संकट बेरोजगारी नहीं बल्कि आर्थिक असमानता होगा।
“AI से सभी बेरोजगार नहीं होंगे, लेकिन क्या लोग खरीद पाएंगे चीजें?”
X (पूर्व में Twitter) पर पोस्ट करते हुए वेम्बू ने लिखा:
“अगर सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट पूरी तरह से ऑटोमेट हो जाए — मैं ज़ोर देना चाहता हूँ कि हम अभी उस स्तर से बहुत दूर हैं — और मेरे जैसे सभी सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम से बाहर हो जाएं, तब भी इंसानों के पास करने के लिए कुछ न कुछ होगा।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि समस्या केवल job loss नहीं है, बल्कि यह है कि जब अधिकतर काम मशीनें और AI करने लगेंगी, तो आम लोगों की income source क्या होगी? क्योंकि अगर उनके पास आय नहीं होगी, तो वे उस सस्ती चीज़ को भी नहीं खरीद पाएंगे जिसे मशीनें बना रही हैं।
सस्ती चीजें, लेकिन खरीदने को पैसे नहीं
वेम्बू ने कहा कि ऑटोमेशन के कारण सामान और सेवाओं की कीमतें काफी कम हो जाएंगी, लेकिन असली चुनौती यह होगी कि लोग उन्हें खरीदने के लिए पैसे कहाँ से लाएँगे। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा:
“जैसे हवा मुफ्त में मिलती है और हम इसकी शिकायत नहीं करते, वैसे ही AI और रोबोट्स से बनी चीजों की कीमतें भी शून्य के करीब आ जाएंगी।”
AI का असली मुद्दा: धन का समान वितरण
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वेम्बू का मानना है कि असली समस्या तकनीकी नहीं बल्कि political economy की है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकारें कैसे सुनिश्चित करती हैं कि समाज में wealth distribution बराबर हो।
उन्होंने कहा, “यह एक आर्थिक वितरण की समस्या है, जिसे सरकारों को नीति और कानून के ज़रिए सुलझाना होगा। खासकर टेक्नोलॉजी कंपनियों के monopoly पर अंकुश लगाना जरूरी है।”
AI पर हाइप और हकीकत में फर्क जरूरी
श्रीधर वेम्बू ने यह भी कहा कि AI के कारण बड़े पैमाने पर नौकरियों में कटौती और लागत में भारी गिरावट जैसी बातें अभी सिर्फ buzz हैं, हकीकत नहीं। उन्होंने चेतावनी दी कि इन दावों से पहले हमें डेटा को देखना चाहिए।
उन्होंने डेनमार्क में किए गए एक शोध का हवाला दिया, जो दर्शाता है कि AI के आने के बावजूद employment trends और productivity पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।
AI के बावजूद अभी नहीं बदला श्रम बाजार
वेम्बू ने Anders Humlum और Emilie Vestergaard द्वारा किए गए एक अध्ययन “Large Language Models, Small Labor Market Effects” का उल्लेख किया। यह अध्ययन दर्शाता है कि AI और विशेष रूप से chatbots के इंटीग्रेशन के बावजूद डेनमार्क के जॉब मार्केट में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है।
क्या भविष्य में आएगा बड़ा संकट?
जहाँ एक ओर AI सस्ती और कुशल सेवाएँ देने की क्षमता रखता है, वहीं श्रीधर वेम्बू का मानना है कि इसका long-term effect समाज की संरचना और middle class पर बेहद गंभीर हो सकता है। अगर आय का साधन खत्म हो गया, तो चाहे जितना सस्ता उत्पाद क्यों न हो — ग्राहक नहीं होगा, तो बाज़ार भी नहीं बचेगा।
श्रीधर वेम्बू की यह चेतावनी हमें याद दिलाती है कि AI और Robotics केवल टेक्नोलॉजी की बात नहीं है — यह सामाजिक और आर्थिक नीतियों का भी सवाल है। अगर सरकारें और कंपनियाँ समय रहते इन मुद्दों पर ध्यान नहीं देतीं, तो यह भविष्य न सिर्फ job losses का, बल्कि middle class collapse का संकेत भी हो सकता है।
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