Income Tax Rule 2025 : भारत में हर व्यक्ति जो आयकर के दायरे में आता है, उसे अपनी आय पर कर देना अनिवार्य है। आयकर विभाग कार्रवाई करता है जब कोई कर चोरी करता है या अपनी वास्तविक आय छुपाता है। यद्यपि, आयकर विभाग को सिर्फ निर्धारित नियमों के अनुसार काम करना चाहिए क्योंकि उसके अधिकार असीमित नहीं हैं। पुराने मामलों को विभाग किसी भी समय अपनी इच्छा से नहीं खोल सकता। इसके लिए कानूनों का पालन करना चाहिए।
आयकर रिटर्न की आवश्यकता और दायित्व
प्रत्येक करदाता की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है आयकर रिटर्न दाखिल करना। कर चोरी होती है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर कम आय दिखाता है या अपनी वास्तविक आय नहीं बताता है। ऐसे मामलों की जांच करके आयकर विभाग उचित कार्रवाई करता है। ऐसे मामले अक्सर सालों बाद सामने आते हैं, लेकिन विभाग को इन्हें खोलने के लिए निर्धारित समय सीमा का पालन करना होगा। टैक्स से जुड़े हर काम को बहुत सावधानी से करना चाहिए।
दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने करदाताओं के हितों की रक्षा करते हुए आयकर मामलों से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि आयकर विभाग सामान्य परिस्थितियों में तीन साल से अधिक पुराने मामलों को नहीं खोल सकता। मामलों में 50 लाख रुपए से कम की आय में गड़बड़ी का आरोप है, तो यह निर्णय विशेष रूप से लागू होता है। हालाँकि, 50 लाख रुपए से अधिक की आय छुपाने या गंभीर धोखाधड़ी के मामले में विभाग 10 साल तक पुराने मामलों को खोल सकता है।
कानूनी सीमाओं और प्रावधानों की सूची
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न्यायालय ने स्पष्ट किया कि तीन साल बीतने के बाद आयकर विभाग आम तौर पर किसी भी करदाता को नोटिस नहीं भेज सकता। यह सीमा कानून की सीमा है। तीन साल बाद कोई मामला खोलने पर विभाग को कुछ विशिष्ट नियमों और शर्तों का पालन करना होगा। इसका अर्थ है कि करदाताओं को वर्षों बाद छोटी-छोटी गलतियों या अनियमितताओं के लिए परेशान नहीं किया जा सकता है। इस प्रणाली का उद्देश्य करदाताओं को अनावश्यक शोषण से बचाना है।
बजट 2021-22 में किए गए बड़े बदलाव
बजट 2021-22 के दौरान, वित्त मंत्रालय ने रिअसेसमेंट से संबंधित एक नया आयकर कानून बनाया था। नया कानून रिअसेसमेंट की अवधि को छह वर्ष से तीन वर्ष कर दिया है। करदाताओं के हितों को देखते हुए यह बदलाव किया गया था। 50 लाख रुपए से अधिक की आय में हेराफेरी और गंभीर धोखाधड़ी के मामलों में, हालांकि, 10 साल तक पुनर्विचार किया जा सकता है। यह प्रावधान बड़े पैमाने पर हुई कर चोरी से निपटने के लिए बनाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देशों को जारी किया
अभिसार बिल्डवेल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जो आयकर विभाग के अधिकारों को सीमित करता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आयकर कानून की धारा 153-ए के तहत रिअसेसमेंट की कार्यवाही के दौरान विभाग बिना किसी ठोस सबूत के किसी करदाता की आय में कोई इजाफा नहीं कर सकता है। इसका अर्थ है कि विभाग के पास पर्याप्त और वैध सबूत होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि उचित परिस्थितियों में धारा 147 और 148 के तहत रिअसेसमेंट को बहाल किया जा सकता है।
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धारा 148ए की स्थापना
2021 के वित्त अधिनियम में धारा 148ए है, जो विभाग को विशेष परिस्थितियों में 10 वर्ष पुराने मामलों को खोलने की अनुमति देती है। लेकिन इसके लिए कम से कम पचास लाख रुपये से अधिक की वार्षिक आय होनी चाहिए। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने कहा कि पुराने मामलों को खोलते समय यह आय सीमा लागू होगी। इसका सीधा अर्थ है कि आयकर विभाग 50 लाख रुपए से कम वार्षिक आय वाले करदाताओं के तीन साल से पुराने मामलों को खोला नहीं सकता।
करदाताओं की सुरक्षा
करदाताओं के अधिकारों को इन नए नियमों और न्यायालयी निर्णयों से अधिक सुरक्षा मिलती है। वर्षों बाद, छोटे और मध्यम आय वर्गीय करदाताओं को अनावश्यक नोटिस और जांच का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह व्यवस्था करदाताओं का विश्वास बढ़ाती है और कानूनी स्पष्टता प्रदान करती है। इसके बावजूद, विभाग ने बड़ी कर चोरी के मामलों में अपनी शक्तियां बरकरार रखी हैं ताकि गंभीर अपराधियों को बचाया जा सके।
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Disclaimer:
विभिन्न न्यायालयी फैसलों और सरकारी नीतियों ने इस लेख को बनाया है। आयकर से संबंधित सभी कानून निरंतर बदलते रहते हैं। किसी भी कानूनी मामले में कार्रवाई करने से पहले, पाठकों को सलाहकार या चार्टर्ड अकाउंटेंट से सलाह लेने की सलाह दी जाती है। यह लेख कानूनी सलाह नहीं है, केवल सामान्य जानकारी के लिए है।